गीत प्रेम का
गीत प्रेम का
तुम बैठे हो पास मेरे
फिर भी ना जाने क्यूं आंख नम है
ये तेरे आने की है खुशी
या फिर तेरे आ के चले जाने का गम है।
रोज करती हो ना मिलने के बहाने
तुम भी जानो तुम बिन ये दिल न माने
तुम अगर झील ना होकर नदी होती
तो मिल जाती मुझको किसी मुहाने।
तुमसे जुदाई मुझे कब है रास आई
तेरे जाते ही मुझको तेरी याद आई
तू शामिल है इस तरह जिंदगी में
जैसे गजल की तू हो खूबसूरत रूबाई।
मेरी सोच पे काबिज तेरा चेहरा
लगता है इश्क पे जमाना ये पहरा
पर अपना नाता है बहुत गहरा
ये बात दुनिया कभी समझ न पाई।
आभार – नवीन पहल – २०.१२.२०२१ ❤️❤️❤️❤️
# प्रतियोगिता हेतु
Swati chourasia
20-Dec-2021 07:25 PM
Very beautiful 👌
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Natash
20-Dec-2021 06:59 PM
👍👍
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